चलो, अर्थतंत्रको गतिशील बनाते है…

    ૧૭-જૂન-૨૦૨૦
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लोकडाउन का सर्जन ब्रेकडाउन. आर्थिक विकास का. फिर भी सरकर, स्वैच्छिक संगठने, सेवभावी कार्यकर्ताओ और मानवीय अभिगम के कारण भारत में गरीब से गरीब और अंतेवासी मानवी भी भूखा न रहे उस की चिंता सबने की. माल गाड़ियों को शरू करना, राशन की दुकाने खुल्ली रखना, अनेक राज्यो और केन्द्र सरकार की सहाय से करोडो लोगो को मुफ्त में अनाज, घर चलाने के लिये अनेक लोगो के बेंक अकाउन्ट में पैसे जमा कराना, श्रमिको, दिव्यांगो, विधवा बहनें, मनरेगा में काम कर रहे मजदूर, असंगठित क्षेत्र के मजदूर और प्रवासी मजदूर के लिये राहत केम्प्स आदि…सभी को कवर कर के, उज्जवला योजना के तहत गेस सिलिन्डर का मुफ्त में वितरण कर के भारतने किसी को भी भूखा नही रखा. सरकार के लगातार विज्ञापनों में, देश में अनाज की कमी नही है और किसी को जमाखोरी में पड़ना नही चाहिए, इस तरज लोगो को आश्वस्त किया. अनुमानित रूप से 2.5 लाख करोड़ रूपे का पैकेज, इसलिए यह संभव हो शका. इसी समय के दरमियान केन्द्र सरकार का १.७ लाख करोड का पेकेज और सभी राज्य सरकार की इस महामारी का सामना करने की योजनाए, सोशियल डिस्टन्सिंग के आग्रह के साथ भारत को विश्व की तुलना में सबसे आगे रखा है।
 
इन्डियन स्टेटेस्टिकल ओर्गेनाईजेसन के आँकड़े की बात करे तो उसके मतानुसार मार्च मास में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और थोक सूचकांक में अगले महीने की तुलना में वृद्धि हुई है। औद्योगिक उत्पादन और बिक्री कम ही है। अप्रैल में भी सेवा, ऋण तथा जरूरी खाध्य माल सामान की आवाजाही के सिवाय सभी प्रवृति पूरी तरह से बंध होने के कारण अर्थव्यवस्था का जो ग्राफ है वो नीचे की और ही है।
 
वैश्विक सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के अनुसार, देश की कुल जीडीपी का १० % तक की सहायता अर्थव्यवस्था की विभिन्न इकाइयों मिल जाए तो अर्थतंत्र को खडा करने में सरलता रहेगी। भारत के लिए २०-२२ लाख करोड़ रुपये का पैकेज? वर्तमान केन्द्र सरकार का बजेट ३० लाख करोड रूपे का है तथा हाल का सहायता पेकेज अंदाजित २ लाख करोड रूपे का है। अमेरिकाने १०%, मलेशियाने १६%, जापानने २०%, इंग्लेन्डन तथा युरोप के देशोने देशों ने बहुत बड़े पैकेज की घोषणा की है।
 
हालांकि अर्थव्यवस्था एक बहुत ही जटिल विषय है लेकिन आशान भाषा में समज ने के लिये, भारत के २२० लख करोड के अंर्थतंत्र में ४५ दिन का उत्पादन अगर संपूरण बंध रहेता है तो अंदाजित २० लाख करोड रूपे की घट पड शकती है। इसकी भरपाई करने के लिए जो आर्थिक सहायता मिलेगी उस से अर्थतंत्र में तेजी आ शकती है। लेकिन विकासशील देश इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते और नाही उनके पास इतने पैसे है। वित्तीय बाजार से उधार लेकर यह सहायता प्रदान करने से, सरकार का नुकसान बढ़ता है, मुद्रास्फीति बढ़ जाती है। ऐसे समय में, रिज़र्व बैंक के पास मौजूद संपत्ति मददरूप हो सकती है। भारत सरकार की फोरेन एक्सचेन्ज होल्डिंग की स्थिति प्रमाण में अच्छी है। ४०० बिलियन डोलर से ज्यादा और जिस की सबसे ज्यादा आयात होती है वह ओइल, जिस की किंमत कम होने के कारण प्रोजेक्ट इम्पोर्ट बिल से बचाव होगा।
 
बैंक और वित्तीय संस्थान, सरकार के वित्त विभाग और रिजर्व बैंक एक हो कर, टेक्स पेयर्स के लिये ऋणीओ के लिये, ब्याज, किश्तों में, दस्तावेजी करण आदि में तीन माह तक की छूट दी गई है। सीआरआर तथा रेपो रेट, रीवर्स रेपो रेट आदि को कम करने से बाजार में धन की उपलब्धता आदि बढे इस संदर्भ में निर्णय क्रियान्वीत किये गए है। फिर भी वैश्विक मानको और अलग-अलग उत्पादन, सेवा और कृषि क्षेत्रों में से प्रत्येक की आवश्यकता को देखते हुए, इन कठिन परिस्थितियों में अर्थव्यवस्था को फिर से सक्रिय करने के लिए अधिक मदद की आवश्यकता है।
 
MSME सेक्टर पर अंदाजित ४५ करोड लोग आधारित है। प्रवासी मजदूर भी १० करोड से ज्यादा, और शहेरी परिवार की संख्या भी लाखो में है। कृषि क्षेत्र जो बारिस पर आधारित है उस की सहायता में भी अग्रिमता। गरीबी रेखा से नीचे जीनेवाले परिवार के लिए योजनाए चालु रखना इस के साथ इन्फ्रास्ट्रकचर के क्षेत्र पर अधिकतम खर्च कर के बडे उद्योग, रोड-बिल्डींग कन्ट्रक्शन आदि रियल एस्टेट को चालु रखना, ओटो मोबाईल, हवाई उड्डयन, होटेल रेस्टरां ईन्डस्ट्रीज आदि पर अलग से सामूहिक विचार करने से नोकरीया बच शकती है। मालिक और वेपारीओ मे विश्वास बढे तो हर क्षेत्र की क्षमता अनुसार वो फिर से खडा हो शकता है। अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों के अनुसार स्थिति पूर्ववत होने के लिये ९ मास से २ साल का समय लग शकता है।लेकिन फिर भी भारत ने अतीत में ८-१०% जीडीपी हासिल कीया है। करोडो की मिलकत वाली धार्मिक संस्थाए मात्र अन्नदान नही लेकिन अर्थतंत्र को स्थापित करनेमें अहम भूमिका निभा शकती है। सत्य नीति, समय के अनुसार आर्थिक निर्णय और निवेशको की सहायता से भारत फिस से विश्व को चौंका कर, अर्थतंत्र पटरी पर लाने का समय घटा शकता है। सभी क्षेत्र की आवश्यकता को समजकर श्रेष्ठ आर्थिक सहार और निर्णयो के माध्यम से वैश्विक परिस्थितिओ को ध्यान में रख कर चीन से बहार जा रहे उत्पादन ईकाओ, विदेशी संस्थाकीय निवेशको भी भरत पर आशा रखे एसी योजनाओं से मनोबल और मजबूत होगा।
 
- मुकेश शाह